Friday, November 2, 2012

सरकार का वादा और भोजपुरी को मान्यता

भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का मामला तो 1969 की चौथी लोक सभा से ही चला आ रहा है लेकिन 17 मई  2012 को जो कुछ भी संसद में भोजपुरी क्षेत्र के सांसदों ने किया वो ऐतिहासिक रहा.  सभी सांसदों ने एकजुट होकर भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए जबरदस्त हंगामा किया, यु पी ए अध्यक्ष और सांसद सोनिया गाँधी को हस्तक्षेप  करना  पड़ा साथ ही अपने भाषण में भारत के गृह मंत्री पी चिदंबरम को भोजपुरी में कहना पडा कि ""हम रउवा सब के भावना के समझत बानी" इस पर अगले सत्र में चर्चा जरूर होगी, लोक सभा अध्यक्ष श्रीमती मीरा कुमार ने भी इस पर हर्ष व्यक्त किया और कहा कि वो बहुत खुश हैं कि जो व्यक्ति कभी हिंदी में भी नहीं बोलता वो आज भोजपुरी में बोलकर आश्वाशन दे रहा है ।

इससे पहले  भोजपुरी अकादमी के अध्यक्ष प्रो रवि कान्त दुबे, भोजपुरी समाज के अध्यक्ष अजित दुबे और  मैंने अलग अलग पत्र लिख सभी सांसदों से ये मांग की थी कि संसद में अपनी मांग रखें और गृह मंत्री का घेराव करें , जिसके  परिणामस्वरुप  आज सांसदों ने हंगामा कर के अपनी मांग रखी और गृह मंत्री को बोलने पर मजबूर कर दिया ,  कांग्रेस के जगदम्बिका पाल ने ध्यानाकर्षण प्रस्ताव में संसद में इस मामले को उठाया, शैलेन्द्र  कुमार ने इसे आगे बढाया, फिर अपने चिर परिचित अंदाज में उमाशंकर सिंह और रघुवंश प्रसाद सिंह ने इसकी धार को और पैना करते हुए गृह मंत्री के कानो तक पहुचाया.

अगस्त 2011 में भी इसी तरह से ध्यानाकर्षण प्रस्ताव  में संजय निरुपम, जगदम्बिका पाल, और रघुवंश प्रसाद सिंह ने भी भोजपुरी के मुद्दे को उठाया था और थोड़ी देर के लिए ही सही लेकिन संसद में हंगामे जैसी स्थिति हो गयी थी । तत्कालीन गृह राज्य मंत्री श्री अजय माकन ने गोल मोल जवाब देकर कि सरकार इस मुद्दे पर गंभीर है, मामले को ठंढा कर दिया.

मैंने चिदम्बरम को  सदन से वादा करते सुना  कि भोजपुरी को मान्यता दिलाने से सम्बंधित प्रक्रिया में तेजी लाई जाएगी। इस सम्बंध में दो समितियों की रिपोर्ट की प्रतीक्षा की जा रही है।  रिपोर्ट मिलने के तुरंत बाद इस दिशा में निर्णय लिए जाएंगे.

मेरे हिसाब से गृह मंत्री महोदय जिन दो रिपोर्टों की बात कर रहे हैं उनमे से एक श्री सीताकांत मोहपात्रा के नेतृत्व में गृह मंत्रालय द्वारा गठित कमिटी की रिपोर्ट तो खुद उनके मंत्रालय में ही मौजूद है और दूसरी संघ लोक सेवा आयोग द्वारा गठित प्रोफेसर आन्दन कृष्णन के नेतृत्व वाली हाई लेबल स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट जो भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग में आयोग  द्वारा 12 मार्च 2012 को भेजी गयी थी. अभी विभाग में विचाराधीन है, जिसे कभी भी वो मँगा कर देख सकते हैं.  इसकी जानकारी सुचना के अधिकार 2005 के तहत मेरे द्वारा मांगी गयी सूचना पर कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, भारत सरकार के पत्र संख्या 41019/2012-Estt.(B )/2320(RTIC -2012) दिनांक  30 अप्रैल  2012. द्वारा उपलब्ध करायी गयी है.   उसके पहले भारत सरकार के गृह मंत्रालय (HR) 21011/11/2011-NI .II दिनांक 14 नवम्बर 2011 में भी संदर्भित किया गया है कि श्री सीताकांत मोहापात्रा के नेतृत्व वाली कमिटी ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है. तो इसमे इंतजार किस बात का, जो रिपोर्ट आपकी मंत्रालय में मौजूद है उसकी प्रतीक्षा कैसी ? मैं उनकी  इस बात से सहमत नहीं हूँ. और मैं ये समझता हूँ कि इस बार दिसम्बर 2011 के गृह राज्य मंत्री अजय माकन की तरह ये मामला गोल मोल  नहीं होगा और पी चिदंबरम और कांग्रेस इस बार भोजपुरी के मामले में कोई जोखिम नहीं उठाएंगे

अब अगर बात करें कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के पास पहुंची, संघ लोक सेवा आयोग द्वारा भेजी प्रो. आनंद कृष्णन के रिपोर्ट की, तो ये रिपोर्ट तो कब की तैयार थी आयोग के पास.  जब मैंने आयोग में एक  आर टी आई लगाया  और इस रिपोर्ट के बाबत पुछा तो मुझे आयोग द्वारा अपने पत्र संख्या  26 /8 /2012 -E .I (B ) दिनांक  6 जनवरी 2012 को गोल मोल जवाब देकर पहले तो भ्रमित किया गया, पुनः अपील का  फैसला मेरे पक्ष में आने पर इसका जवाब आयोग ने मुझे  अपने पत्र संख्या 26 /8 /2012 - i -I (ख) दिनांक 19 अप्रैल 2012 को  दिया,   इस बीच उन्होंने स्थायी कमिटी की रिपोर्ट भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को 12 मार्च 2012 भेज दी थी.  इसके पहले उन्होंने ये रिपोर्ट क्यों नहीं भेजी थी ? जब कि भारत सरकार, गृह मंत्रालय ने अपने कार्यालय ज्ञापांक संख्या IV -14014 /9 /2006 -NI . II दिनांक 28 .09 .2006   के द्वारा सविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के परिणाम स्वरुप भोजपुरी और राजस्थानी को मिलाने वाले लाभों के सम्बन्ध में विचार आमंत्रित किये थे । उसके जवाब में आयोग ने अपने पत्र संख्या 1 /2 /2006 -E .I (B)  दिनांक 03 -1 -2006 में गृह मंत्रालय को सूचित किया था कि भारत सरकार के सचिवों की एक गठित कमिटी  इस पर निर्णय लेगी. 13 जुलाई 2009 को आयोग द्वारा गठित सचिवों की हाई लेवल स्टैंडिंग कमिटी की बैठक हुई और उसकी रिपोर्ट आयोग ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, या गृह मंत्रालय  भारत सरकार को भेजने की बजाय अपने पास रख लिया क्यों ? मुझे इस मामले में सरकार की मंशा कुछ ज्यादा अच्छी नहीं दिखती फिर भी जब तक साँस तब तक आस यह देखना बहुत दिलचस्प होगा कि सरकार भोजपुरी के मामले में किस कदर और किस तरह अपने वादे को पूरा करती है ।

सत्येन्द्र कुमार उपाध्याय
आर टी आई कार्यकर्त्ता

1 comment:

  1. सतेंदर भाई आप जैसे लोगों का परिश्रम व्यर्थ नहीं जाएगा। एक न एक दिन सरकार को चोंकर कर भोजपुरी को इसका उचित स्थान देना ही होगा। आप का भोजपुरी प्रेम और इसके उत्थान के लिए सक्रियता नमन योग्य है। आप के संघर्ष में हम भी सहभागी हैं। भगवान बहुत जल्द आपकी कामनाओं को पूरा करेंगे। भोजपुरी अउर खाली भोजपुरी...आपन भाखा आपन देश।।

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