Thursday, February 3, 2011

रिश्तों में खटाश का परिचायक: अश्लीलता

भोजपुरी संगीत में व्याप्त अश्लीलता

प्रजापति ब्रह्मा द्वारा प्रतिपादित चारो वेद इस जगत के मूलाधार होने के साथ साथ श्वास प्रश्वास प्राणमय जगत के प्राण हैं | सम्पूर्ण संसार सामवेद से परिचित तो अवश्य होगा जहाँ से संगीत का प्रादुर्भाव हुआ, समय के साथ साथ संगीत के स्तर में परिवर्तन, स्वरों की अभिव्यक्ति के  स्वरुप में भिन्नता या यों कहें कि विकृतियाँ उत्पन्न हो गयी है, जिसे हम सब प्रतिदिन अपने आँखों के साथ देखते हैं उस रंग में रंगना तो नहीं चाहते लेकिन आधुनिकता की चादर ओढ़कर आधुनिक होने का ढोंग रचाते हैं |

संगीत की ताकत को कोई नहीं आँक सका,  सगीत के पास रिश्तों में रस भरने की ताकत है । संगीत एक ऐसी चीज है, जिससे न केवल लोग अपनी भावनाओं का इजहार करते हैं, बल्कि एक दुसरे के प्रति राय भी बनाते हैं । वहीँ भोजपुरी संगीत अपनी अश्लीलता की वजह से रिश्तों में खटाश का परिचायक बन गयी है । भोजपुरी संगीत में व्याप्त अश्लीलता कई बार शर्मशार होने पर मजबूर कर देती है ।

जरा सोचों  जैसे "बिहारी" शब्द का अभिप्राय कुछ दिनों पहले दिल्ली,  पंजाब, और हरयाणा में गाली के रूप में होता है वैसा ही अभिप्राय संगीत की दुनिया में भोजपुरी संगीत का है ।  इसी वजह से दुनिया में सबसे मधुर भाषा हमारी प्रिय भोजपुरी  को अभी तक सम्मान नहीं मिल पाया ।

एक पौराणिक कथा उद्धृत है  कि  एक बार 'कामदेव' ने लोगों को परेशान करने के लिए अपनी माया चारों ओर फैला दी। असीम काम वासनाएं भड़का दीं। काम ने किसी को नहीं छोड़ा , सभी को वासना-विलास का प्रतीक प्रतिनिधि बना दिया।  भगवान की पूजा का रूप ही बदल गया ।  भगवान के चरित्रों की भी शृंगारपरक चर्चाएं होने लगीं। लोग उन्हीं में रस लेने लगे। भक्ति का भी जब यही स्वरूप प्रचलित हो उठा तो भगवान की आत्मा भी कराह उठी तब महाकाल आगे आए,  और उसकी इस माया-मरीचिका को निरस्त करने का बीड़ा उठाया। भगवान शिव ने तीसरा नेत्र खोला। उसके खुलते ही वह सारा माया-कलेवर जलकर भस्म हो गया। परन्तु यह आज फिर पुनरावृत्ति कर रहा है और आज कामदेवता ने अश्लीलता का रूप ले लिया है  फिर वही पौराणिक  स्थिति हो चुकी है, लेकिन आज भगवान शिव की जगह स्व विकेक रूपी तीसरे  नेत्र के खुलने की  जरूरत है  ।

इस आशय में मैंने भोजपुर, कैमूर और रोहतास के आरक्षी अधीक्षक को फैक्स और पत्र भेज कर मांग की कि सभी थाना प्रभारी को एक लिखित आदेश जारी किया जाय  कि कानफोडू आवाज में बजा रहे इन फूहड़ लोगो के वाद्य यंत्र जब्त कर लिए जाएँ और पब्लिक प्लेस पर तेज आवाज में गाने न बजाये जाएँ तथा अश्लीलता के विरुद्ध हमारी शांतिपूर्ण विरोध में हमारे मददगार हों ।

भोजपुरी क्षेत्र की जनता से भी मेरा आग्रह है कि भोजपुरी संगीतों से अश्लीलता को मिटा कर,  भोजपुरी को उसका खोया हुआ सम्मान वापस दिलाने की मुख्य धारा में शामिल हो कर हमारा सहयोग करें ।

भोजपुरी हमारी माँ है
उसमे व्याप्त अश्लीलता कोढ़
गांधीगिरी हमारी लडाई का रास्ता है
और उसे समाप्त करना हमारा लक्ष्य


सत्येन्द्र उपाध्याय "भोजपुरम"
सचिव
कुबेर शिक्षा एवं समज कल्याण समिति (पंजी)