राज्य विभाजन के प्रस्ताव को चुनावी मौके पर अपने चिर परिचित अंदाज में विरोधियों को चित करने के लिए मायावती ने कैबिनेट से मंजूरी भले ही दिला दी हो, वैसे तो विभाजन की मांग बहुत पुरानी है. डॉ. बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर (संविधान के निर्माण कर्ता) भी उस समय यूपी, बिहार व मध्य प्रदेश का विभाजन के पक्षधर थे जब हिन्दू महासभा के प्रतिनिधि भाई परमानन्द ने लन्दन की गोलमेज कोंफ्रेंस (1930) में प्रान्त के विभाजन का मुद्दा उठाया था और लोगों को अनियंत्रित प्रशासन से निजात दिलाने की गरज से प्रथम राज्य पुनर्गठन आयोग के सदस्य के. एम. पणिकर ने भी विभाजन का समर्थन करते हुए इसे जनहित में बताया थाउस समय से लेकर आज तक ना जाने कितने लोगों ने विभाजन का मुद्दा उठाये रखा जिसमे पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह (1953) , विश्वनाथ सिंह गहमरी, कल्पनाथ राय, अजित सिंह और आज के राजा बुंदेला | यहाँ तक कि 1977 के जनता पार्टी के घोषणा पत्र में भी राज्य विभाजन का मुद्दा शामिल था | लेकिन किसी को सफलता नहीं मिली |
कुछ दिन पहले यु पी की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने अलग पूर्वांचल गठन की बात की तो बिहार के मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार उर्फ़ सुशासन बाबू ने "पूर्वांचल को बिहार में मिलाने " की बात कह कर सबको सांप सुंघा दिया, जिससे कुछ दिनों तक तो अलग भोजपुरी प्रदेश की मांग तक ठंढे बस्ते में चली गयी. और पुरे देश में सुशासन के साथ साथ अपनी दरियादिली के लिए भी चर्चित हो गए |
लेकिन आज पुनः जब उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने चुनावी चौका लगते हुए राज्य के बंटवारे पर अपनी मुहर लगायी तो बिहार के मुख्यमंत्री और देश में सुशासन की तस्वीर पेश कर रहे नीतीश कुमार ने मायावती को बिना सोचे समझे सही करार दिया । और माया की हाँ में हाँ मिलते हुए उत्तर प्रदेश को चार हिस्से में बांटने के प्रस्ताव का स्वागत भी किया है। उनके हिसाब से छोटे राज्य होने से न सिर्फ विकास को गति मिलती है बल्कि आम लोगों की पानी, बिजली जैसी मूलभूत समस्याएं भी आसानी से पूरी हो सकती हैं। इसका मतलब कहीं न कहीं माननीय मुख्यमंत्री श्री नितीश जी ने भी बिहार तक को बांटने की सोच अपने दिमाग में पाली हुयी है. जिसे आने वाले दिनों में कभी भी क्रियान्वित कर सकते हैं | नितीश जी के अनुसार उनकी पार्टी छोटे राज्यों की हिमायती है |लेकिन क्या सोचा है कि एक नए राज्य बनाने से आम आदमी को सभी मुलभुत सुविधाएं मिल जायेंगी. जब तक हमारे नेताओं की मानसिकता नहीं बदलेगी तब तक कुछ भी नहीं हो सकता. अपने राजनितिक वोट बैंक को और बड़ा एवं पुख्ता बनाने के उदेश्य से चली गयी इस चाल को जनता नकार देगी. विभाजन की राजनीती कर रहे नेताओं को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी जनता क्या चाहती, क्योंकि उन्हें ऐशो आराम की जिन्दगी चाहिए, अधिक सुख सुविधाएँ चाहिए, और ऐसा तभी होगा जब अलग राज्य का गठन होगा, एक मुख्यमंत्री होगा, ज्यादा से ज्यादा मंत्री होंगे. तभी तो उनकी जिंदगी खुशहाल होगी आम जनता चाहे भांड में जाए.
शायद उनको इस से मतलब नहीं है कि एक राज्य बनाने में हजारों करोड़ रुपये का खर्च होता है, अगर ऊपर के दोनों मुख्यमंत्रियों की माने तो ७ नए राज्य बनेंगे तो हमारे देश की अर्थ व्यवस्था का क्या होगा ? जो आज खुद ही विकट परिस्थिति में है.
जागो जनता जागो
कभी हमें जाति के नाम से पर बाँट बैठे
तो कभी मजहब के नाम पर
अब हमें क्षेत्र के नाम पर बांटने को तैयार बैठे
हम भी कमर कस कर तकरार को तैयार बैठे