Tuesday, November 22, 2011

विभाजन की ओछी राजनीती

राज्य विभाजन के प्रस्ताव को चुनावी मौके पर अपने चिर परिचित अंदाज में विरोधियों को चित करने के लिए मायावती ने कैबिनेट से मंजूरी भले ही दिला दी हो, वैसे तो विभाजन की मांग बहुत पुरानी है. डॉ. बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर (संविधान के निर्माण कर्ता) भी उस समय यूपी, बिहार व मध्य प्रदेश का विभाजन के पक्षधर थे जब हिन्दू महासभा के प्रतिनिधि भाई परमानन्द ने लन्दन की गोलमेज कोंफ्रेंस (1930) में प्रान्त के विभाजन का मुद्दा उठाया था और लोगों को अनियंत्रित प्रशासन से निजात दिलाने की गरज से प्रथम राज्य पुनर्गठन आयोग के सदस्य के. एम. पणिकर ने भी विभाजन का समर्थन करते हुए इसे जनहित में बताया था

उस समय से लेकर आज तक ना जाने कितने लोगों ने विभाजन का मुद्दा उठाये रखा जिसमे पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह (1953) , विश्वनाथ सिंह गहमरी, कल्पनाथ राय, अजित सिंह और आज के राजा बुंदेला | यहाँ तक कि 1977 के जनता पार्टी के घोषणा पत्र में भी राज्य विभाजन का मुद्दा शामिल था | लेकिन किसी को सफलता नहीं मिली |

कुछ दिन पहले यु पी की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने अलग पूर्वांचल गठन की बात की तो बिहार के मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार उर्फ़ सुशासन बाबू ने "पूर्वांचल को बिहार में मिलाने " की बात कह कर सबको सांप सुंघा दिया, जिससे कुछ दिनों तक तो अलग भोजपुरी प्रदेश की मांग तक ठंढे बस्ते में चली गयी. और पुरे देश में सुशासन के साथ साथ अपनी दरियादिली के लिए भी चर्चित हो गए |

लेकिन आज पुनः जब उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने चुनावी चौका लगते हुए राज्य के बंटवारे पर अपनी मुहर लगायी तो बिहार के मुख्यमंत्री और देश में सुशासन की तस्वीर पेश कर रहे नीतीश कुमार ने मायावती को बिना सोचे समझे सही करार दिया । और माया की हाँ में हाँ मिलते हुए उत्तर प्रदेश को चार हिस्से में बांटने के प्रस्ताव का स्वागत भी किया है। उनके हिसाब से छोटे राज्य होने से न सिर्फ विकास को गति मिलती है बल्कि आम लोगों की पानी, बिजली जैसी मूलभूत समस्याएं भी आसानी से पूरी हो सकती हैं। इसका मतलब कहीं न कहीं माननीय मुख्यमंत्री श्री नितीश जी ने भी बिहार तक को बांटने की सोच अपने दिमाग में पाली हुयी है. जिसे आने वाले दिनों में कभी भी क्रियान्वित कर सकते हैं | नितीश जी के अनुसार उनकी पार्टी छोटे राज्यों की हिमायती है |

लेकिन क्या सोचा है कि एक नए राज्य बनाने से आम आदमी को सभी मुलभुत सुविधाएं मिल जायेंगी. जब तक हमारे नेताओं की मानसिकता नहीं बदलेगी तब तक कुछ भी नहीं हो सकता. अपने राजनितिक वोट बैंक को और बड़ा एवं पुख्ता बनाने के उदेश्य से चली गयी इस चाल को जनता नकार देगी. विभाजन की राजनीती कर रहे नेताओं को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी जनता क्या चाहती, क्योंकि उन्हें ऐशो आराम की जिन्दगी चाहिए, अधिक सुख सुविधाएँ चाहिए, और ऐसा तभी होगा जब अलग राज्य का गठन होगा, एक मुख्यमंत्री होगा, ज्यादा से ज्यादा मंत्री होंगे. तभी तो उनकी जिंदगी खुशहाल होगी आम जनता चाहे भांड में जाए.

शायद उनको इस से मतलब नहीं है कि एक राज्य बनाने में हजारों करोड़ रुपये का खर्च होता है, अगर ऊपर के दोनों मुख्यमंत्रियों की माने तो ७ नए राज्य बनेंगे तो हमारे देश की अर्थ व्यवस्था का क्या होगा ? जो आज खुद ही विकट परिस्थिति में है.

जागो जनता जागो

कभी हमें जाति के नाम से पर बाँट बैठे
तो कभी मजहब के नाम पर
अब हमें क्षेत्र के नाम पर बांटने को तैयार बैठे

हम भी कमर कस कर तकरार को तैयार बैठे

Thursday, February 3, 2011

रिश्तों में खटाश का परिचायक: अश्लीलता

भोजपुरी संगीत में व्याप्त अश्लीलता

प्रजापति ब्रह्मा द्वारा प्रतिपादित चारो वेद इस जगत के मूलाधार होने के साथ साथ श्वास प्रश्वास प्राणमय जगत के प्राण हैं | सम्पूर्ण संसार सामवेद से परिचित तो अवश्य होगा जहाँ से संगीत का प्रादुर्भाव हुआ, समय के साथ साथ संगीत के स्तर में परिवर्तन, स्वरों की अभिव्यक्ति के  स्वरुप में भिन्नता या यों कहें कि विकृतियाँ उत्पन्न हो गयी है, जिसे हम सब प्रतिदिन अपने आँखों के साथ देखते हैं उस रंग में रंगना तो नहीं चाहते लेकिन आधुनिकता की चादर ओढ़कर आधुनिक होने का ढोंग रचाते हैं |

संगीत की ताकत को कोई नहीं आँक सका,  सगीत के पास रिश्तों में रस भरने की ताकत है । संगीत एक ऐसी चीज है, जिससे न केवल लोग अपनी भावनाओं का इजहार करते हैं, बल्कि एक दुसरे के प्रति राय भी बनाते हैं । वहीँ भोजपुरी संगीत अपनी अश्लीलता की वजह से रिश्तों में खटाश का परिचायक बन गयी है । भोजपुरी संगीत में व्याप्त अश्लीलता कई बार शर्मशार होने पर मजबूर कर देती है ।

जरा सोचों  जैसे "बिहारी" शब्द का अभिप्राय कुछ दिनों पहले दिल्ली,  पंजाब, और हरयाणा में गाली के रूप में होता है वैसा ही अभिप्राय संगीत की दुनिया में भोजपुरी संगीत का है ।  इसी वजह से दुनिया में सबसे मधुर भाषा हमारी प्रिय भोजपुरी  को अभी तक सम्मान नहीं मिल पाया ।

एक पौराणिक कथा उद्धृत है  कि  एक बार 'कामदेव' ने लोगों को परेशान करने के लिए अपनी माया चारों ओर फैला दी। असीम काम वासनाएं भड़का दीं। काम ने किसी को नहीं छोड़ा , सभी को वासना-विलास का प्रतीक प्रतिनिधि बना दिया।  भगवान की पूजा का रूप ही बदल गया ।  भगवान के चरित्रों की भी शृंगारपरक चर्चाएं होने लगीं। लोग उन्हीं में रस लेने लगे। भक्ति का भी जब यही स्वरूप प्रचलित हो उठा तो भगवान की आत्मा भी कराह उठी तब महाकाल आगे आए,  और उसकी इस माया-मरीचिका को निरस्त करने का बीड़ा उठाया। भगवान शिव ने तीसरा नेत्र खोला। उसके खुलते ही वह सारा माया-कलेवर जलकर भस्म हो गया। परन्तु यह आज फिर पुनरावृत्ति कर रहा है और आज कामदेवता ने अश्लीलता का रूप ले लिया है  फिर वही पौराणिक  स्थिति हो चुकी है, लेकिन आज भगवान शिव की जगह स्व विकेक रूपी तीसरे  नेत्र के खुलने की  जरूरत है  ।

इस आशय में मैंने भोजपुर, कैमूर और रोहतास के आरक्षी अधीक्षक को फैक्स और पत्र भेज कर मांग की कि सभी थाना प्रभारी को एक लिखित आदेश जारी किया जाय  कि कानफोडू आवाज में बजा रहे इन फूहड़ लोगो के वाद्य यंत्र जब्त कर लिए जाएँ और पब्लिक प्लेस पर तेज आवाज में गाने न बजाये जाएँ तथा अश्लीलता के विरुद्ध हमारी शांतिपूर्ण विरोध में हमारे मददगार हों ।

भोजपुरी क्षेत्र की जनता से भी मेरा आग्रह है कि भोजपुरी संगीतों से अश्लीलता को मिटा कर,  भोजपुरी को उसका खोया हुआ सम्मान वापस दिलाने की मुख्य धारा में शामिल हो कर हमारा सहयोग करें ।

भोजपुरी हमारी माँ है
उसमे व्याप्त अश्लीलता कोढ़
गांधीगिरी हमारी लडाई का रास्ता है
और उसे समाप्त करना हमारा लक्ष्य


सत्येन्द्र उपाध्याय "भोजपुरम"
सचिव
कुबेर शिक्षा एवं समज कल्याण समिति (पंजी)