Friday, November 2, 2012

भोजपुरी भाषा, साहित्य, संस्कृति, समस्या और समाधान

जो  देश भाषा  में ही गुलाम हो वो किसी और बात में स्वाधीन कैसे हो सकता है । महात्मा गांधी जी की भी सोच थी   कि अगर भारतवर्ष भाषा में एक नहीं हो पाया तो  ब्रिटिश शासन के विरुद्ध स्वाधीनता संग्राम को आगे बढ़ने में बड़ी मुश्किल आएगी । भारत के  प्रादेशिक भाषाओं के प्रति गांधी जी का  रुख उदासीन नहीं था  । वो  स्वयं गुजराती भाषी थे , अंग्रेजी बोलने में किसी से कम नहीं थे, लेकिन अंग्रेजों  के विरुद्ध स्वाधीनता के संग्राम के लिए खांटी भोजपुरिया भाषी क्षेत्र ही चुना और  ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध स्वाधीनता संग्राम को पुरे देश में एक साथ आगे बढ़ने के लिए हिंदी भाषा के वाजिब समझा और उसे ही चुना  ।
 
बाकि और सब प्रादेशिक  भाषाओँ की बात की जाए तो कई प्रादेशिक भाषाएँ तो अपने क्षेत्रों में भी बहुत तेज़ी से पिछड़ती जा रही हैं । लेकिन भोजपुरी एक मात्र ऐसी प्रादेशिक भाषा है जो दिन दुनी रात चौगुनी तरक्की करते हुए अन्तराष्ट्रीय भाषा के रूप में विख्यात होती जा रही है  ।

भोजपुरी साहित्य
कहा जाता है, जिसमे हित की भावना, जो कल्याण की भावना से ओत प्रोत विचार हो, उसी को साहित्य की श्रेणी में रखा जाता है । इस दृष्टि कोण से भोजपुरी साहित्य की व्यापकता का कोई जोड़ नहीं है ।  जहाँ भोजपुरी के आदि कवि रुढिवादी सामंती सोंच और औरतों और मानव मात्र के प्रति घृणित मानसिकता रखने वाले वाले समाज के ताना बाना को तार-तार करने का  भागीरथ प्रयास कबीर दास सरीखे लोगों ने किया और भक्ति की सहज और   मानव प्रेमी धारा को  स्थापित करने का अथक प्रयास किया , वहीँ  भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर भी भोजपुरी समाज के व्यथा औरतों की विरह बेदना और अन्यान्य आदि समस्याओं पर जिस खूबसूरती से मानव मन की गहराइ को  अपनी  रचना में उकेरा हैं उसका कोई मिसाल नहीं है  | बात 'विदेशिया'  की  हो या 'सतसई' की दोनों कालजयी एवं सास्वत रचनाएँ हैं  |

रुढिवादिता एवं धार्मिक अन्धविश्वास के विरोध में भोजपुरी के आदिकवि कबीर दास ने कहा है  :-

१. निगुरा बाभन ना भला गुरुमुख भला चमार, इ देवतन से कुत्ता भला नित उठ भोंके द्वार ।
२. काकर पाथर जोर के मस्जिद लियो बनाय, ता चढी मुल्ला बांग दे का बहरा हुआ खुदाय ।

लेकिन वहीँ सामाजिक समरसता एवं सौमनस्यता को स्थापित करने के लिए भी उन्होंने कहा  :-

एक जोत से सब उत्पन्ना का बाभन का शूद्र ।

भोजपुरी संस्कृति
जिस तरह परम्परा जड़ नहीं होता, परंपरा नाम है प्रवाह का, नदी के अविरल धारा की तरह उसमे जीतनी प्रवाह होगी उतना ही पानी निर्मल होगा| संस्कृति में भी प्रवाह का होना बहुत जरूरी है | यह सांस्कृतिक प्रवाह का ही प्रमाण है की यहाँ शक, हूण जैसे अनेक आक्रमणकारी आये लेकिन वे सारे भारत की विशाल सांस्कृतिक प्रवाह के बाँहों में सिमट गए और मुख्य धारा का अंग बन गए | जहाँ तक भोजपुरी संस्कृति का सवाल है यहाँ की संस्कृति आपसी लगाव, सामाजिक समरसता तथा मानव प्रेम का ही पर्यायवाची है |

भाद्रपद की हरितालिका तीज, छठ, सरस्वती पूजा, जिउतिया, गोधन एवं  पिंडिया जैसे त्यौहार पारिवारिक और सामाजिक बंधन को न सिर्फ मजबूत बनाते हैं, बल्कि भावनात्मक रूप से हमें एक दुसरे के करीब भी लाते हैं, जो इसके माटी को एक सोंधी खुशब देता है, जिसकी महक भोजपुरी प्रदेश से लेकर सात संदर पार मॉरिशस, त्रिनिदाद फिजी आदि देशों में भी देखा जा सकता है |

डोम्कच (जलूआ) {यह नृत्य बारात वाले दिन लडके वालों के घर में होता है} जैसे नृत्यों से न सिर्फ समाज की महिलाओं का मनोरंजन होता है, बल्कि ये हमारी सुरक्षा व्यवस्था के नजरिये को भी दर्शाता है |

समस्या


भोजपुरी प्रदेश का अतीत बहुत ही उज्जवल रहा है, लेकिन वक्त ने करवट बदला और आज यह क्षेत्र समस्याओं का गढ़ बन चूका है | सामाजिक समरसता और सदभाव तो इस समाज की आत्मा है, किन्तु क्षुद्र स्वार्थों से ओत-प्रोत मुट्ठी भर असामाजिक लोगों ने यहाँ के कुछ खास वर्ग को गुमराह किया जिसके कारण जातिवाद और नक्सलवाद जैसे कोढ़ ने इस समाज के अंगो को खाना शुरू किया | विकास की धारा का बंद होना तथा राजनेताओं द्वारा तवायफ के दुपट्टे वाली सियासत करना, इसने कोढ़ में खाज का काम किया और आज यह क्षेत्र बाढ़, चिकित्सा और शिक्षा जैसे बुनियादी सुबिधाओं का आभाव, जातीय अहम्, बाहुबलियों का प्रकोप, बेरोजगारी, नक्सलवाद, सामंतवाद आदि जैसे भयानक समस्याओं का ज्वालामुखी बन चूका है, रही सही कसर प्रशासन की उदासीनता एवं भ्रटाचार ने पूरी कर दी |

समाधान
जहाँ तक इन समस्याओं के समाधान की बात है तो इसे दुरुस्त करने के लिए आसमान से कोई फरिस्ता नहीं आएगा, हम लोगों को ही पहल करनी पड़ेगी. समय समय पर

सरकार ने इन समस्याओं से निजात पाने को अनेक नीतियाँ बनाई लेकिन नियत ठीक नहीं थी, जहाँ तक मैं समझता हूँ सबसे पहले नियत ठीक करनी होगी, तभी नीतियाँ ठीक बनेगी, और जब नीतियाँ ठीक बनेगी तभी उनका कार्यान्वयन ठीक होगा, क्योंकि हमारी नियत पहले ही ठीक हो चुकी होगी |

भ्रस्टाचार खत्म करने होंगे, और ये ख़त्म तभी होगा जब हमारी नियत ठीक होगी | भूपतियों द्वारा भूमिहीनों पर हो रहे अत्याचार को बंद करना होगा, और ये तभी ठीक होगा जब हमारी नियत ठीक होगी |

पर्यावरण के अनुकूल औद्योगीकरण, शिक्षा, चिकित्सा और हर हाथ को रोजगार जैसी बुनियादी सुबिधायें हर हाल में इस क्षेत्र को देना ही होगा, तभी हम इस क्षेत्र की बर्बादी रोक सकेंगे तथा क्षेत्रीय सद्भाव को बनाए भी रख सकेंगे

जय भारत जय भोजपुरिया

सत्येन्द्र उपाध्याय "भोजपुरम"
आर टी आई कार्यकर्ता
पीरो, भोजपुर, बिहार

satyendra's blogs: विभाजन की ओछी राजनीती

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satyendra's blogs: सरकार का वादा और भोजपुरी को मान्यता

satyendra's blogs: सरकार का वादा और भोजपुरी को मान्यता

सरकार का वादा और भोजपुरी को मान्यता

भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का मामला तो 1969 की चौथी लोक सभा से ही चला आ रहा है लेकिन 17 मई  2012 को जो कुछ भी संसद में भोजपुरी क्षेत्र के सांसदों ने किया वो ऐतिहासिक रहा.  सभी सांसदों ने एकजुट होकर भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए जबरदस्त हंगामा किया, यु पी ए अध्यक्ष और सांसद सोनिया गाँधी को हस्तक्षेप  करना  पड़ा साथ ही अपने भाषण में भारत के गृह मंत्री पी चिदंबरम को भोजपुरी में कहना पडा कि ""हम रउवा सब के भावना के समझत बानी" इस पर अगले सत्र में चर्चा जरूर होगी, लोक सभा अध्यक्ष श्रीमती मीरा कुमार ने भी इस पर हर्ष व्यक्त किया और कहा कि वो बहुत खुश हैं कि जो व्यक्ति कभी हिंदी में भी नहीं बोलता वो आज भोजपुरी में बोलकर आश्वाशन दे रहा है ।

इससे पहले  भोजपुरी अकादमी के अध्यक्ष प्रो रवि कान्त दुबे, भोजपुरी समाज के अध्यक्ष अजित दुबे और  मैंने अलग अलग पत्र लिख सभी सांसदों से ये मांग की थी कि संसद में अपनी मांग रखें और गृह मंत्री का घेराव करें , जिसके  परिणामस्वरुप  आज सांसदों ने हंगामा कर के अपनी मांग रखी और गृह मंत्री को बोलने पर मजबूर कर दिया ,  कांग्रेस के जगदम्बिका पाल ने ध्यानाकर्षण प्रस्ताव में संसद में इस मामले को उठाया, शैलेन्द्र  कुमार ने इसे आगे बढाया, फिर अपने चिर परिचित अंदाज में उमाशंकर सिंह और रघुवंश प्रसाद सिंह ने इसकी धार को और पैना करते हुए गृह मंत्री के कानो तक पहुचाया.

अगस्त 2011 में भी इसी तरह से ध्यानाकर्षण प्रस्ताव  में संजय निरुपम, जगदम्बिका पाल, और रघुवंश प्रसाद सिंह ने भी भोजपुरी के मुद्दे को उठाया था और थोड़ी देर के लिए ही सही लेकिन संसद में हंगामे जैसी स्थिति हो गयी थी । तत्कालीन गृह राज्य मंत्री श्री अजय माकन ने गोल मोल जवाब देकर कि सरकार इस मुद्दे पर गंभीर है, मामले को ठंढा कर दिया.

मैंने चिदम्बरम को  सदन से वादा करते सुना  कि भोजपुरी को मान्यता दिलाने से सम्बंधित प्रक्रिया में तेजी लाई जाएगी। इस सम्बंध में दो समितियों की रिपोर्ट की प्रतीक्षा की जा रही है।  रिपोर्ट मिलने के तुरंत बाद इस दिशा में निर्णय लिए जाएंगे.

मेरे हिसाब से गृह मंत्री महोदय जिन दो रिपोर्टों की बात कर रहे हैं उनमे से एक श्री सीताकांत मोहपात्रा के नेतृत्व में गृह मंत्रालय द्वारा गठित कमिटी की रिपोर्ट तो खुद उनके मंत्रालय में ही मौजूद है और दूसरी संघ लोक सेवा आयोग द्वारा गठित प्रोफेसर आन्दन कृष्णन के नेतृत्व वाली हाई लेबल स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट जो भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग में आयोग  द्वारा 12 मार्च 2012 को भेजी गयी थी. अभी विभाग में विचाराधीन है, जिसे कभी भी वो मँगा कर देख सकते हैं.  इसकी जानकारी सुचना के अधिकार 2005 के तहत मेरे द्वारा मांगी गयी सूचना पर कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, भारत सरकार के पत्र संख्या 41019/2012-Estt.(B )/2320(RTIC -2012) दिनांक  30 अप्रैल  2012. द्वारा उपलब्ध करायी गयी है.   उसके पहले भारत सरकार के गृह मंत्रालय (HR) 21011/11/2011-NI .II दिनांक 14 नवम्बर 2011 में भी संदर्भित किया गया है कि श्री सीताकांत मोहापात्रा के नेतृत्व वाली कमिटी ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है. तो इसमे इंतजार किस बात का, जो रिपोर्ट आपकी मंत्रालय में मौजूद है उसकी प्रतीक्षा कैसी ? मैं उनकी  इस बात से सहमत नहीं हूँ. और मैं ये समझता हूँ कि इस बार दिसम्बर 2011 के गृह राज्य मंत्री अजय माकन की तरह ये मामला गोल मोल  नहीं होगा और पी चिदंबरम और कांग्रेस इस बार भोजपुरी के मामले में कोई जोखिम नहीं उठाएंगे

अब अगर बात करें कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के पास पहुंची, संघ लोक सेवा आयोग द्वारा भेजी प्रो. आनंद कृष्णन के रिपोर्ट की, तो ये रिपोर्ट तो कब की तैयार थी आयोग के पास.  जब मैंने आयोग में एक  आर टी आई लगाया  और इस रिपोर्ट के बाबत पुछा तो मुझे आयोग द्वारा अपने पत्र संख्या  26 /8 /2012 -E .I (B ) दिनांक  6 जनवरी 2012 को गोल मोल जवाब देकर पहले तो भ्रमित किया गया, पुनः अपील का  फैसला मेरे पक्ष में आने पर इसका जवाब आयोग ने मुझे  अपने पत्र संख्या 26 /8 /2012 - i -I (ख) दिनांक 19 अप्रैल 2012 को  दिया,   इस बीच उन्होंने स्थायी कमिटी की रिपोर्ट भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को 12 मार्च 2012 भेज दी थी.  इसके पहले उन्होंने ये रिपोर्ट क्यों नहीं भेजी थी ? जब कि भारत सरकार, गृह मंत्रालय ने अपने कार्यालय ज्ञापांक संख्या IV -14014 /9 /2006 -NI . II दिनांक 28 .09 .2006   के द्वारा सविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के परिणाम स्वरुप भोजपुरी और राजस्थानी को मिलाने वाले लाभों के सम्बन्ध में विचार आमंत्रित किये थे । उसके जवाब में आयोग ने अपने पत्र संख्या 1 /2 /2006 -E .I (B)  दिनांक 03 -1 -2006 में गृह मंत्रालय को सूचित किया था कि भारत सरकार के सचिवों की एक गठित कमिटी  इस पर निर्णय लेगी. 13 जुलाई 2009 को आयोग द्वारा गठित सचिवों की हाई लेवल स्टैंडिंग कमिटी की बैठक हुई और उसकी रिपोर्ट आयोग ने कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, या गृह मंत्रालय  भारत सरकार को भेजने की बजाय अपने पास रख लिया क्यों ? मुझे इस मामले में सरकार की मंशा कुछ ज्यादा अच्छी नहीं दिखती फिर भी जब तक साँस तब तक आस यह देखना बहुत दिलचस्प होगा कि सरकार भोजपुरी के मामले में किस कदर और किस तरह अपने वादे को पूरा करती है ।

सत्येन्द्र कुमार उपाध्याय
आर टी आई कार्यकर्त्ता

Thursday, November 1, 2012

बिहार : विशेष राज्य का दर्जा

बिहार के बंटवारे के बाद सारा खनिज झारखण्ड के हिस्से चला गया, उस समय बिहार में रा ज द की सरकार थी और केंद्र में नीतीश समर्थित एन डी ए की, तब भी राजद ने बिहार के विकास के लिए राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने की बात की थी, लेकिन एन डी ए की सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी और न ही नीतीश जी ने कुछ कहा. तत्कालीन एन डी ए सरकार ने  न तो विशेष पैकेज ही दिया और ना विशेष राज्य का दर्ज़ा.  जबकि बिहार पुर्नगठन विधेयक के प्रावधान में ही यह दर्ज है कि राज्य को विशेष सहूलियत दी जाए। अब केंद्र में कांग्रेस शासित सरकार और बिहार में नीतीश कुमार की ज द (यु) और भाजपा की सरकार सत्ता में है . अब नीतीश कुमार जी विशेष पैकेज और विशेष दर्जे की मांग कर रहे हैं, आन्दोलन कर रहे है, हस्ताक्षर अभियान चला रहे है, जन्तर मंतर दिल्ली में धरना दे रहे है, और ठीक इसके विपरीत अपने विधायकों और मंत्रियों के वेतन भत्ते में कई गुना की बढ़ोतरी कर रहे हैं.

हालांकि पिछले साल के मुकाबले चार हजार करोड़ ज्यादा की योजना को योजना आयोग से  मंजूरी दिए जाने के बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग को जारी रखा है.   योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिह अहलूवालिया और नीतीश कुमार के बीच नई दिल्ली में २७ जून २०१२ को  हुई एक बैठक के दौरान  वित्त वर्ष 2012-13 के लिए आयोग ने  बिहार की 28,000 करोड़ रूपये की वार्षिक योजना को मंजूरी दे दी, जो पिछले साल के मुकाबले 4000 करोड़ रूपए ज्यादा है।  साथ ही योजना आयोग द्वारा राज्य के लिए विशेष पैकेज को 12वीं पंचवर्षीय योजना में भी जारी रखने से संबंधी नीतीश सरकार की मांग को भी मान लिया गया है । जबकि विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग पर कोई सकारात्मक आश्वासन अब तक आयोग ने नहीं दिया है। इसके समबन्ध में योजना आयोग द्वारा एक प्रस्ताव कैबिनेट को भेजा जाएगा जिसमे यह तय होगा कि राज्य को हर साल कितनी धनराशि देने को मंजूरी दी जाए

नीतीश सरकार के प्रथम कार्यकाल की गन्ने से इथेनॉल बनाने के लिए कंपनियों को बिहार आमत्रित करने की घोषणा उस समय समय बेकार हो गयी जब केंद्र सरकार की एक नीति ने इसमे पेंच फंसा दिया कि गन्ने से इथेनॉल नहीं बनाया जा सकता, बड़ी कंपनिया, जो बिहार में निवेश को तैयार थी, उन्होंने हाथ  पीछे खीच लिए और बिहार का विकास जहाँ था वहीँ ठहर गया, सरकार और वहां के लोगों के सपने चूर  चूर  हो गए. लेकिन नीतीश तो क्या किसी भी राजनितिक दल ने इसका विरोध नहीं किया और ना ही उस नियम में बदलाव के लिए किसी तरह के आन्दोलन की बात की. लेकिन अब नीतीश बाबू और उनकी पार्टी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए आंदोलन की बात कर रहे हैं .

नीतीश बाबू को विशेष पैकेज और विशेष राज्य का दर्जे की बात की जरुरत अपने दुसरे कार्यकाल में ही क्यों पड़ी ? हुआ यूं कि , नीतीश सरकार अपने पहले कार्यकाल में सड़क और क़ानून व्यवस्था दुरस्त करने का छलावा जनता को  देकर दूसरी बारी सत्ता पर काबिज तो हो गए. पर उनके इस छलावे की पोल बिहार में अपराध के बढ़ते ग्राफ ने पूरी तरह खोल कर रख दिया,  पहले शासन काल में  विकास के नाम पर बिहार में सिर्फ सड़कें बनीं. और उनमें से ज़्यादातर सड़कें केंद्रीय योजनाओं के अंतर्गत बनी, इसकी पोल पट्टी भी जनता के सामने खुल चुकी है, जगह जगह जनता के विरोध का सामना करना पड़ रहा है, बक्सर जिले में तो उन पर पथराव भी किया गया था.  बिजली के नाम पर केवल पटना जिला ही खुशहाल है बाकी जिले बिजली को आज भी तरसते ही हैं, 

अपने दुसरे कार्यकाल में नीतीश बाबू की सरकार हर मोर्चे पर बिफल रही, बाढ़, भ्रष्टाचार, घोटाला, बिजली, और सबसे बड़ा बढ़ा अपराध ग्राफ, की मारी ये सरकार अपने अगले चुनावों में विशेष पैकेज, विशेष राज्य के दर्जे  को भावनात्मक मुद्दा बनाने की तैयारी में है,  जनता के सामने ये रोना रोया जाएगा कि केंद्र सरकार मदद नहीं कर रही है.   अपनी कमी को केंद्र सरकार की कमी बता कर जनता के सामने पेश किया जाएगा, लेकिन नीतीश बाबू ये जनता है ये सब जानती है .

बिहार में अपराध

बिहार में अपराध

बिहार सरकार द्वारा अगर कोई ठोस पहल नहीं हुयी तो आने वाले दिनों में  कानून-व्यवस्था के लिए गंभीर खतरा पैदा हो जाएगा। क्योंकि जिस हिसाब से बिहार में अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। हत्या, बलात्कार, डकैती, चोरी की घटनाएं दिन-ब-दिन बढ़ रही हैं, ये इस बात का घोतक हैं कि सुशासन अब कुशासन हो गया है । आपराधिक घटनाओं और सर्व प्रथम तो अपराधियों पर अंकुश लगाना बहुत जरूरी हो गया है। इसका ज्वलंत उदहारण भाई ब्रह्मेश्वर सिंह उर्फ़ बरमेसर मुखिया की हत्या और उसके बाद भाई बर्ह्मेश्वर के समर्थकों द्वारा तीन दिनों तक किया गया उत्पात ।
हत्यायों की अगर बात करें तो पटना जिले में कुछ ही दिनों के अन्तराल में 50  के करीब खून हुए, साथ ही 5 जून को समस्तीपुर में एक मोबाइल व्यापारी की  हत्या, 6 जून को रंगदारी न देने पर गोपालगंज में गंडक नदी पर पुल बनाने वाली कंपनी के २ अधिकारीयों की हत्या और एक को घायल,  जहाँ शाम को पटना में होमगार्ड जवान की हत्या होती है, तो सुबह दरभंगा में एक ASI को गोली मार दी जाती है ,  इसके साथ साथ अररिया में महादलित जमीन घोटाला एक तरफ बिहार सरकार की सबसे बड़ी नाकामी दर्शा रही है वहीँ कुछ ही दिनों में 400 बच्चों की मस्तिष्क ज्वर से मौत सरकार को हर मोर्चे पर विफल साबित करने के लिए काफी है ।  मुजफ्फरपुर में दिन दहाड़े एक व्यक्ति की हत्या को भरी बाज़ार में 50   राउण्ड से ज्यादा गोलिया चलाई जाती है,  दिन दहाड़े पटना में पुलिस की नाक निचे से दो दवा दुकानों से करीब छः लाख रूपये लूट लिए जाते हैं,  क्या ये बिहार में अपराधियों की सामानांतर सरकार का घोतक नहीं है ?   बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के रिश्तेदार और उसके नौकर की पटना में हत्या कर दी जाती है और पुलिस केवल अनुसन्धान में जुटी है.
बिहार में राजनैतिक हत्याये भी एक नई मुकाम पर पहुँच चुकी हैं  इण्डिया टुडे के अनुसार  दो साल से कम समय में 34 मुखिया मौत की भेंट चढ़ चुके हैं. उनके मुताबिक सात मुखिया मोतिहारी, चार बेगूसराय, तीन मुजफ्फरपुर और दो-दो पटना, सीतामढ़ी, औरंगाबाद और मुंगेर में मार दिए गए. सिवान, छपरा, आरा, नालंदा, नवादा, शेखपुरा, जहानाबाद, गोपालगंज, मधुबनी, कटिहार, सहरसा और बांका जिलों में एक-एक मुखिया की हत्या हुई है.
दो घटनाएं तो सिर्फ सितंबर महीने में हुई हैं. नवादा में 6 सितंबर को एक उप-मुखिया दशरथ केवट की हत्या हो गई. इसके बाद 11 सितंबर को वैशाली जिले में सुखी पंचायत के मुखिया शिवमोहन सिंह की मुजफ्फरपुर जिले में गोली मारकर हत्या कर दी गई.

बिहार की इस सुशासनी सरकार में बलात्कारियों की भी पूरी मौज है।  बिहार शरीफ में एक छात्रा से सामुहिक बलात्कार और जलाये जाने की  घटना से  लोग अभी उबरे भी नहीं थे कि एक कांग्रेसी विधायक के आवास पर हुए गैंग रेप से लोग सकते में आ गए ।   आपको बताते चलें कि बिहार की सुशासनी सरकार के मुखिया सुशासन बाबू के गृह जिले नालंदा में जब बलात्कारी अपनी मंशा  में सफल नहीं हुए तो छात्रा को कमरे में बंद कर गैस से जला दिया, इसके पहले भागलपुर के आश्रम में साध्वियां भी अपने आश्रम के लोगों से बलात्कार का शिकार बन चुकी हैं ।   
जहाँ अररिया जिले में एक स्कूल के पास बलात्कार के बाद हत्या कर महिला की लाश फ़ेंक दी गयी वहीँ गया जिले में बलात्कारियों ने एक छात्रा को सरेआम अगवा कर सामूहिक बलात्कार किया और उसे राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर चलती कार से नीचे फ़ेंककर बड़ी आसानी से निकल गए ।  इसके बाद सूबे की राजधानी पटना में नेपाली लड़की को सामूहिक बलात्कार के बाद चलती बस से सरेआम सड़क पर फ़ेंक देना,  महिला शिक्षक की सरेआम बेइज्जती और सीडी कांड ने बिहार के और जिलों की तो दूर,  पटना में भी लड़किया  और महिलाये सुरक्षित नहीं हैं साबित कर दिया है ।  पिछले ३ महीने में ही सामूहिक बलात्कार की करीब करीब २० -२५ घटनाये घट चुकी हैं । आम आवाम यह निर्णय नहीं ले पा रहा है कि इस कथित सुशासनी सरकार में इतने दुशासन कैसे खुला घूम रहे हैं ?  इस सरकार की पुलिस तो सिर्फ औपचारिकता भर करके अपने फर्ज को पूरा हुआ समझ लेती है।  इस पर नितीश कुमार जी कह रहे हैं बिहार बदल रहा है, सचमुच बदल रहा है,  और इस बदलते बिहार का घिनौना सच दिल को दहला देने वाला है। जिस प्रदेश की महिलाओं की इज्जत सरेआम लुटी जा रही हो और अपराधी बेख़ौफ़ घटनाओं को अंजाम देते फिर रहे हों, साथ ही कई संगीन मामलों में कोई तीव्रतम और कठोर कार्यवाही नहीं हो,  वहां के अपराधियों के हौसले तो बुलंद होंगे ही ।  पुलिस की संख्या बल में  कमी ने इस पर सोने पे सुहागे जैसा काम किया है ।
वैसे कहा गया है यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता, अब समझने वाली बात ये है कि बिहार में नारी की पूजा हो नहीं रही तो  देवता कहाँ से बसेंगे ऐसे में दानवों का बिहार कहा जाय तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.



2010 में तो राष्‍ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्‍यूरो, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के अनुसार बिहार मर्डर, मर्डर की कोशिश, अपहरण, दहेज़ के लिए हत्या और डकैती में दुसरे स्थान पर था. जरा रुकिए पहला स्थान भी मिला है बिहार को,  उपद्रव में   !   पुलिस विकास एवं अनुसन्धान ब्यूरो के तीन वर्ष पूर्व यानि जनवरी 2009   के आंकड़ों पर नजर डालें तो बिहार में  स्वीकृत 85 ,531 पुलिस की वजाय वास्तव में  59,999  ही  पुलिस की तैनाती है,  हर एक लाख लोगों की सुरक्षा में मात्र 63 पुलिसकर्मी ही हैं जबकि स्वीकृति 90 पुलिस वालों की है । राज्य में प्रति 100 वर्ग किलोमीटर में तैनात पुलिसकर्मियों की संख्या 64 के करीब है जबकि स्वीकृत 91 पुलिस वालों की है । 2011 की जनगणना के मुताबिक  सिविल पुलिस थाना आज भी 813 है जो प्रति 1,27,681 लोगों पर एक थाना है ।

आप अगर गौर करेंगे तो देखेंगे कि बिहार पुलिस ने अपने वेब साईट पर फ़रवरी २०११ के बाद कोई आंकड़ा ही नहीं डाला है, इससे तो यही लगता है कि सरकार अपनी नाकामियों को छुपा रही, और आंकड़े इतने ज्यादा है कि उसे सामने लाने में डर रही है,  जैसा कि आप सभी जानते हैं कि बिहार सरकार ने खुद कबूल  किया है कि  बिहार में अपराध का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है, ये कबूला तो जरूर है लेकिन उसके निवारण के लिए हमारी सुशासनी सरकार क्या कर रही है ?  भाई ब्रह्मेश्वर की हत्या तो इस बात का सबूत है कि बिहार सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया और  अपराधियों में पुलिस और प्रशासन का कोई खौफ भी नहीं है. 
निश्चित रूप ये सभी घटनाएं पुलिस प्रशासन के लिए सिर दर्द बढ़ाने वाली है।  इसलिए ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए तत्काल कड़े कदम उठाने की जरुरत है।
अब अगर बात करें आंकड़ों की तो 2011 में कुल रजिस्टर्ड मामले 1,47,663  वही मार्च 2012 तक में इनकी संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ी है जो 50000 के करीब पहुँच गयी है,  2001 में 3619 हत्याएं हूई थी  2010 और 2011 में इस संख्या में कमी जरूर आई  जो क्रमशः 3362 और 3198  रही (जिसमे 2011 में मात्र 773 मामलों में फाईनल रिपोर्ट पेश की गयी है ),  लेकिन यहीं आंकड़ा  अब मार्च 2012 तक 1125 तक पहुँच गया है।  हत्या  की यही रफ़्तार रही तो दिसम्बर तक ये 4000 के पार पहुँच जाएगा.  इसी प्रकार बलात्कार और उपद्रव  के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि हुयी है जहाँ 2010 में 795 बलात्कार हुए थे वहीँ  2011 में 934 ,  तो मार्च 2012 तक इस की संख्या 331 तक पहुँच गयी है, उसी प्रकार 2010 में  8809 उपद्रव हुए तो 2011 में यह बढ़कर 9768 हो गयी है ।  डकैती और चोरी की घटनाओं में कमी जरूर आई है पर इससे सुशासन सरकार की कालिख धुलती नजर नहीं आ रही है ।

मुख्यमंत्री महोदय को चाहिए कि संसाधनों में वृद्धि करते हुए समाज को अपराध-मुक्त, भय मुक्त  कराने  के लिए कोई ठोस कदम उठाएं क्योंकि जिस प्रकार से इनमे वृद्धि हुयी है, और अगर इसपर अभी अंकुश नहीं लगा तो आने वाले समय में यह एक विकराल समस्या बन जाएगी और तब इस पर लगाम कसना काफी मुश्किल होगा। वैसे ही हमारे बिहार में समस्यायों की कोई कमी नहीं है ।

स्रोत :  आर टी आई, एन आर सी बी, इ टी वी बिहार और  पुलिस विकास एवं अनुसन्धान ब्यूरो



बिहार में सिविल, जिला और रिज़र्व पुलिस की स्वीकृत और वास्तविक संख्या बल 1.1.2009  
  पद  / post
स्वीकृत/ sanctioned
वास्तविक संख्या/ actual
खाली / vacancy
पद  / post
स्वीकृत/ sanctioned
वास्तविक संख्या/ actual
खाली / vacancy
DGP
9
17
0
Inspector
724
586
138
IGP
17
15
2
S. I.
8713
4919
3794
DIG
26
18
8
A.S.I.
4785
4166
619
SSP/SP
73
59
14
H.Constable
8756
4681
4075
ADD. SP
3
0
3
Constable
43804
32651
11153
ASP/ DY.SP
314
212
102
स्रोत :  पुलिस विकास एवं अनुसन्धान ब्यूरो
आर टी आई से मंगाई गयी रिपोर्ट के अनुसार 2011 आंकड़े इस प्रकार हैं : 
मर्डर 
डकैती
रॉबरी
फरेब
चोरी
उपद्रव
फिरौती के लिए अपहरण
बलात्कार
सड़क डकैती 
बैंक डकैती 
बैंक रॉबरी 
बच्चों का अपहरण
3198
556
1381
3776
16292
9768
57
934
194
11
8
1821
2012 ds vkadM+s ,ulhvkjch miyC/k ugha djk ik jgh gS 
भारत में जमीन-जायदाद से जुड़ी हत्याएं
वर्ष                  बिहार                 कुल
2010                916                   3,097
2009                836                   2,935
2008                825                   2,852
2007                599                   2,856
2006                567                   2,682
2005                671                   2,810
आंकड़े राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के अनुसार

Tuesday, November 22, 2011

विभाजन की ओछी राजनीती

राज्य विभाजन के प्रस्ताव को चुनावी मौके पर अपने चिर परिचित अंदाज में विरोधियों को चित करने के लिए मायावती ने कैबिनेट से मंजूरी भले ही दिला दी हो, वैसे तो विभाजन की मांग बहुत पुरानी है. डॉ. बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर (संविधान के निर्माण कर्ता) भी उस समय यूपी, बिहार व मध्य प्रदेश का विभाजन के पक्षधर थे जब हिन्दू महासभा के प्रतिनिधि भाई परमानन्द ने लन्दन की गोलमेज कोंफ्रेंस (1930) में प्रान्त के विभाजन का मुद्दा उठाया था और लोगों को अनियंत्रित प्रशासन से निजात दिलाने की गरज से प्रथम राज्य पुनर्गठन आयोग के सदस्य के. एम. पणिकर ने भी विभाजन का समर्थन करते हुए इसे जनहित में बताया था

उस समय से लेकर आज तक ना जाने कितने लोगों ने विभाजन का मुद्दा उठाये रखा जिसमे पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह (1953) , विश्वनाथ सिंह गहमरी, कल्पनाथ राय, अजित सिंह और आज के राजा बुंदेला | यहाँ तक कि 1977 के जनता पार्टी के घोषणा पत्र में भी राज्य विभाजन का मुद्दा शामिल था | लेकिन किसी को सफलता नहीं मिली |

कुछ दिन पहले यु पी की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने अलग पूर्वांचल गठन की बात की तो बिहार के मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार उर्फ़ सुशासन बाबू ने "पूर्वांचल को बिहार में मिलाने " की बात कह कर सबको सांप सुंघा दिया, जिससे कुछ दिनों तक तो अलग भोजपुरी प्रदेश की मांग तक ठंढे बस्ते में चली गयी. और पुरे देश में सुशासन के साथ साथ अपनी दरियादिली के लिए भी चर्चित हो गए |

लेकिन आज पुनः जब उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने चुनावी चौका लगते हुए राज्य के बंटवारे पर अपनी मुहर लगायी तो बिहार के मुख्यमंत्री और देश में सुशासन की तस्वीर पेश कर रहे नीतीश कुमार ने मायावती को बिना सोचे समझे सही करार दिया । और माया की हाँ में हाँ मिलते हुए उत्तर प्रदेश को चार हिस्से में बांटने के प्रस्ताव का स्वागत भी किया है। उनके हिसाब से छोटे राज्य होने से न सिर्फ विकास को गति मिलती है बल्कि आम लोगों की पानी, बिजली जैसी मूलभूत समस्याएं भी आसानी से पूरी हो सकती हैं। इसका मतलब कहीं न कहीं माननीय मुख्यमंत्री श्री नितीश जी ने भी बिहार तक को बांटने की सोच अपने दिमाग में पाली हुयी है. जिसे आने वाले दिनों में कभी भी क्रियान्वित कर सकते हैं | नितीश जी के अनुसार उनकी पार्टी छोटे राज्यों की हिमायती है |

लेकिन क्या सोचा है कि एक नए राज्य बनाने से आम आदमी को सभी मुलभुत सुविधाएं मिल जायेंगी. जब तक हमारे नेताओं की मानसिकता नहीं बदलेगी तब तक कुछ भी नहीं हो सकता. अपने राजनितिक वोट बैंक को और बड़ा एवं पुख्ता बनाने के उदेश्य से चली गयी इस चाल को जनता नकार देगी. विभाजन की राजनीती कर रहे नेताओं को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी जनता क्या चाहती, क्योंकि उन्हें ऐशो आराम की जिन्दगी चाहिए, अधिक सुख सुविधाएँ चाहिए, और ऐसा तभी होगा जब अलग राज्य का गठन होगा, एक मुख्यमंत्री होगा, ज्यादा से ज्यादा मंत्री होंगे. तभी तो उनकी जिंदगी खुशहाल होगी आम जनता चाहे भांड में जाए.

शायद उनको इस से मतलब नहीं है कि एक राज्य बनाने में हजारों करोड़ रुपये का खर्च होता है, अगर ऊपर के दोनों मुख्यमंत्रियों की माने तो ७ नए राज्य बनेंगे तो हमारे देश की अर्थ व्यवस्था का क्या होगा ? जो आज खुद ही विकट परिस्थिति में है.

जागो जनता जागो

कभी हमें जाति के नाम से पर बाँट बैठे
तो कभी मजहब के नाम पर
अब हमें क्षेत्र के नाम पर बांटने को तैयार बैठे

हम भी कमर कस कर तकरार को तैयार बैठे

Thursday, February 3, 2011

रिश्तों में खटाश का परिचायक: अश्लीलता

भोजपुरी संगीत में व्याप्त अश्लीलता

प्रजापति ब्रह्मा द्वारा प्रतिपादित चारो वेद इस जगत के मूलाधार होने के साथ साथ श्वास प्रश्वास प्राणमय जगत के प्राण हैं | सम्पूर्ण संसार सामवेद से परिचित तो अवश्य होगा जहाँ से संगीत का प्रादुर्भाव हुआ, समय के साथ साथ संगीत के स्तर में परिवर्तन, स्वरों की अभिव्यक्ति के  स्वरुप में भिन्नता या यों कहें कि विकृतियाँ उत्पन्न हो गयी है, जिसे हम सब प्रतिदिन अपने आँखों के साथ देखते हैं उस रंग में रंगना तो नहीं चाहते लेकिन आधुनिकता की चादर ओढ़कर आधुनिक होने का ढोंग रचाते हैं |

संगीत की ताकत को कोई नहीं आँक सका,  सगीत के पास रिश्तों में रस भरने की ताकत है । संगीत एक ऐसी चीज है, जिससे न केवल लोग अपनी भावनाओं का इजहार करते हैं, बल्कि एक दुसरे के प्रति राय भी बनाते हैं । वहीँ भोजपुरी संगीत अपनी अश्लीलता की वजह से रिश्तों में खटाश का परिचायक बन गयी है । भोजपुरी संगीत में व्याप्त अश्लीलता कई बार शर्मशार होने पर मजबूर कर देती है ।

जरा सोचों  जैसे "बिहारी" शब्द का अभिप्राय कुछ दिनों पहले दिल्ली,  पंजाब, और हरयाणा में गाली के रूप में होता है वैसा ही अभिप्राय संगीत की दुनिया में भोजपुरी संगीत का है ।  इसी वजह से दुनिया में सबसे मधुर भाषा हमारी प्रिय भोजपुरी  को अभी तक सम्मान नहीं मिल पाया ।

एक पौराणिक कथा उद्धृत है  कि  एक बार 'कामदेव' ने लोगों को परेशान करने के लिए अपनी माया चारों ओर फैला दी। असीम काम वासनाएं भड़का दीं। काम ने किसी को नहीं छोड़ा , सभी को वासना-विलास का प्रतीक प्रतिनिधि बना दिया।  भगवान की पूजा का रूप ही बदल गया ।  भगवान के चरित्रों की भी शृंगारपरक चर्चाएं होने लगीं। लोग उन्हीं में रस लेने लगे। भक्ति का भी जब यही स्वरूप प्रचलित हो उठा तो भगवान की आत्मा भी कराह उठी तब महाकाल आगे आए,  और उसकी इस माया-मरीचिका को निरस्त करने का बीड़ा उठाया। भगवान शिव ने तीसरा नेत्र खोला। उसके खुलते ही वह सारा माया-कलेवर जलकर भस्म हो गया। परन्तु यह आज फिर पुनरावृत्ति कर रहा है और आज कामदेवता ने अश्लीलता का रूप ले लिया है  फिर वही पौराणिक  स्थिति हो चुकी है, लेकिन आज भगवान शिव की जगह स्व विकेक रूपी तीसरे  नेत्र के खुलने की  जरूरत है  ।

इस आशय में मैंने भोजपुर, कैमूर और रोहतास के आरक्षी अधीक्षक को फैक्स और पत्र भेज कर मांग की कि सभी थाना प्रभारी को एक लिखित आदेश जारी किया जाय  कि कानफोडू आवाज में बजा रहे इन फूहड़ लोगो के वाद्य यंत्र जब्त कर लिए जाएँ और पब्लिक प्लेस पर तेज आवाज में गाने न बजाये जाएँ तथा अश्लीलता के विरुद्ध हमारी शांतिपूर्ण विरोध में हमारे मददगार हों ।

भोजपुरी क्षेत्र की जनता से भी मेरा आग्रह है कि भोजपुरी संगीतों से अश्लीलता को मिटा कर,  भोजपुरी को उसका खोया हुआ सम्मान वापस दिलाने की मुख्य धारा में शामिल हो कर हमारा सहयोग करें ।

भोजपुरी हमारी माँ है
उसमे व्याप्त अश्लीलता कोढ़
गांधीगिरी हमारी लडाई का रास्ता है
और उसे समाप्त करना हमारा लक्ष्य


सत्येन्द्र उपाध्याय "भोजपुरम"
सचिव
कुबेर शिक्षा एवं समज कल्याण समिति (पंजी)