जो देश भाषा में ही गुलाम हो वो किसी और बात में स्वाधीन कैसे हो सकता है
। महात्मा
गांधी जी की भी सोच थी कि अगर भारतवर्ष भाषा में एक नहीं हो पाया तो
ब्रिटिश शासन के विरुद्ध स्वाधीनता संग्राम को आगे बढ़ने में बड़ी मुश्किल
आएगी ।
भारत के प्रादेशिक भाषाओं के प्रति गांधी जी का रुख उदासीन नहीं था ।
वो स्वयं गुजराती भाषी थे , अंग्रेजी बोलने में किसी से कम नहीं थे, लेकिन
अंग्रेजों के विरुद्ध स्वाधीनता
के संग्राम के लिए खांटी भोजपुरिया भाषी क्षेत्र ही चुना और
ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध स्वाधीनता संग्राम को पुरे देश में एक साथ आगे
बढ़ने के लिए हिंदी भाषा के वाजिब समझा और उसे ही चुना ।
बाकि और सब प्रादेशिक भाषाओँ की बात की जाए तो कई प्रादेशिक भाषाएँ तो अपने क्षेत्रों में भी बहुत तेज़ी से पिछड़ती जा रही हैं । लेकिन भोजपुरी एक मात्र ऐसी प्रादेशिक भाषा है जो दिन दुनी रात चौगुनी तरक्की करते हुए अन्तराष्ट्रीय भाषा के रूप में विख्यात होती जा रही है ।
भोजपुरी साहित्य
कहा जाता है, जिसमे हित की भावना, जो कल्याण की भावना से ओत प्रोत विचार हो, उसी को साहित्य की श्रेणी में रखा जाता है । इस दृष्टि कोण से भोजपुरी साहित्य की व्यापकता का कोई जोड़ नहीं है । जहाँ भोजपुरी के आदि कवि रुढिवादी सामंती सोंच और औरतों और मानव मात्र के प्रति घृणित मानसिकता रखने वाले वाले समाज के ताना बाना को तार-तार करने का भागीरथ प्रयास कबीर दास सरीखे लोगों ने किया और भक्ति की सहज और मानव प्रेमी धारा को स्थापित करने का अथक प्रयास किया , वहीँ भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर भी भोजपुरी समाज के व्यथा औरतों की विरह बेदना और अन्यान्य आदि समस्याओं पर जिस खूबसूरती से मानव मन की गहराइ को अपनी रचना में उकेरा हैं उसका कोई मिसाल नहीं है | बात 'विदेशिया' की हो या 'सतसई' की दोनों कालजयी एवं सास्वत रचनाएँ हैं |
रुढिवादिता एवं धार्मिक अन्धविश्वास के विरोध में भोजपुरी के आदिकवि कबीर दास ने कहा है :-
१. निगुरा बाभन ना भला गुरुमुख भला चमार, इ देवतन से कुत्ता भला नित उठ भोंके द्वार ।
२. काकर पाथर जोर के मस्जिद लियो बनाय, ता चढी मुल्ला बांग दे का बहरा हुआ खुदाय ।
लेकिन वहीँ सामाजिक समरसता एवं सौमनस्यता को स्थापित करने के लिए भी उन्होंने कहा :-
एक जोत से सब उत्पन्ना का बाभन का शूद्र ।
भोजपुरी संस्कृति
जिस तरह परम्परा जड़ नहीं होता, परंपरा नाम है प्रवाह का, नदी के अविरल धारा की तरह उसमे जीतनी प्रवाह होगी उतना ही पानी निर्मल होगा| संस्कृति में भी प्रवाह का होना बहुत जरूरी है | यह सांस्कृतिक प्रवाह का ही प्रमाण है की यहाँ शक, हूण जैसे अनेक आक्रमणकारी आये लेकिन वे सारे भारत की विशाल सांस्कृतिक प्रवाह के बाँहों में सिमट गए और मुख्य धारा का अंग बन गए | जहाँ तक भोजपुरी संस्कृति का सवाल है यहाँ की संस्कृति आपसी लगाव, सामाजिक समरसता तथा मानव प्रेम का ही पर्यायवाची है |
भाद्रपद की हरितालिका तीज, छठ, सरस्वती पूजा, जिउतिया, गोधन एवं पिंडिया जैसे त्यौहार पारिवारिक और सामाजिक बंधन को न सिर्फ मजबूत बनाते हैं, बल्कि भावनात्मक रूप से हमें एक दुसरे के करीब भी लाते हैं, जो इसके माटी को एक सोंधी खुशब देता है, जिसकी महक भोजपुरी प्रदेश से लेकर सात संदर पार मॉरिशस, त्रिनिदाद फिजी आदि देशों में भी देखा जा सकता है |
डोम्कच (जलूआ) {यह नृत्य बारात वाले दिन लडके वालों के घर में होता है} जैसे नृत्यों से न सिर्फ समाज की महिलाओं का मनोरंजन होता है, बल्कि ये हमारी सुरक्षा व्यवस्था के नजरिये को भी दर्शाता है |
समस्या
भोजपुरी प्रदेश का अतीत बहुत ही उज्जवल रहा है, लेकिन वक्त ने करवट बदला और आज यह क्षेत्र समस्याओं का गढ़ बन चूका है | सामाजिक समरसता और सदभाव तो इस समाज की आत्मा है, किन्तु क्षुद्र स्वार्थों से ओत-प्रोत मुट्ठी भर असामाजिक लोगों ने यहाँ के कुछ खास वर्ग को गुमराह किया जिसके कारण जातिवाद और नक्सलवाद जैसे कोढ़ ने इस समाज के अंगो को खाना शुरू किया | विकास की धारा का बंद होना तथा राजनेताओं द्वारा तवायफ के दुपट्टे वाली सियासत करना, इसने कोढ़ में खाज का काम किया और आज यह क्षेत्र बाढ़, चिकित्सा और शिक्षा जैसे बुनियादी सुबिधाओं का आभाव, जातीय अहम्, बाहुबलियों का प्रकोप, बेरोजगारी, नक्सलवाद, सामंतवाद आदि जैसे भयानक समस्याओं का ज्वालामुखी बन चूका है, रही सही कसर प्रशासन की उदासीनता एवं भ्रटाचार ने पूरी कर दी |
समाधान
जहाँ तक इन समस्याओं के समाधान की बात है तो इसे दुरुस्त करने के लिए आसमान से कोई फरिस्ता नहीं आएगा, हम लोगों को ही पहल करनी पड़ेगी. समय समय पर
सरकार ने इन समस्याओं से निजात पाने को अनेक नीतियाँ बनाई लेकिन नियत ठीक नहीं थी, जहाँ तक मैं समझता हूँ सबसे पहले नियत ठीक करनी होगी, तभी नीतियाँ ठीक बनेगी, और जब नीतियाँ ठीक बनेगी तभी उनका कार्यान्वयन ठीक होगा, क्योंकि हमारी नियत पहले ही ठीक हो चुकी होगी |
भ्रस्टाचार खत्म करने होंगे, और ये ख़त्म तभी होगा जब हमारी नियत ठीक होगी | भूपतियों द्वारा भूमिहीनों पर हो रहे अत्याचार को बंद करना होगा, और ये तभी ठीक होगा जब हमारी नियत ठीक होगी |
पर्यावरण के अनुकूल औद्योगीकरण, शिक्षा, चिकित्सा और हर हाथ को रोजगार जैसी बुनियादी सुबिधायें हर हाल में इस क्षेत्र को देना ही होगा, तभी हम इस क्षेत्र की बर्बादी रोक सकेंगे तथा क्षेत्रीय सद्भाव को बनाए भी रख सकेंगे
जय भारत जय भोजपुरिया
सत्येन्द्र उपाध्याय "भोजपुरम"
आर टी आई कार्यकर्ता
पीरो, भोजपुर, बिहार
बाकि और सब प्रादेशिक भाषाओँ की बात की जाए तो कई प्रादेशिक भाषाएँ तो अपने क्षेत्रों में भी बहुत तेज़ी से पिछड़ती जा रही हैं । लेकिन भोजपुरी एक मात्र ऐसी प्रादेशिक भाषा है जो दिन दुनी रात चौगुनी तरक्की करते हुए अन्तराष्ट्रीय भाषा के रूप में विख्यात होती जा रही है ।
भोजपुरी साहित्य
कहा जाता है, जिसमे हित की भावना, जो कल्याण की भावना से ओत प्रोत विचार हो, उसी को साहित्य की श्रेणी में रखा जाता है । इस दृष्टि कोण से भोजपुरी साहित्य की व्यापकता का कोई जोड़ नहीं है । जहाँ भोजपुरी के आदि कवि रुढिवादी सामंती सोंच और औरतों और मानव मात्र के प्रति घृणित मानसिकता रखने वाले वाले समाज के ताना बाना को तार-तार करने का भागीरथ प्रयास कबीर दास सरीखे लोगों ने किया और भक्ति की सहज और मानव प्रेमी धारा को स्थापित करने का अथक प्रयास किया , वहीँ भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर भी भोजपुरी समाज के व्यथा औरतों की विरह बेदना और अन्यान्य आदि समस्याओं पर जिस खूबसूरती से मानव मन की गहराइ को अपनी रचना में उकेरा हैं उसका कोई मिसाल नहीं है | बात 'विदेशिया' की हो या 'सतसई' की दोनों कालजयी एवं सास्वत रचनाएँ हैं |
रुढिवादिता एवं धार्मिक अन्धविश्वास के विरोध में भोजपुरी के आदिकवि कबीर दास ने कहा है :-
१. निगुरा बाभन ना भला गुरुमुख भला चमार, इ देवतन से कुत्ता भला नित उठ भोंके द्वार ।
२. काकर पाथर जोर के मस्जिद लियो बनाय, ता चढी मुल्ला बांग दे का बहरा हुआ खुदाय ।
लेकिन वहीँ सामाजिक समरसता एवं सौमनस्यता को स्थापित करने के लिए भी उन्होंने कहा :-
एक जोत से सब उत्पन्ना का बाभन का शूद्र ।
भोजपुरी संस्कृति
जिस तरह परम्परा जड़ नहीं होता, परंपरा नाम है प्रवाह का, नदी के अविरल धारा की तरह उसमे जीतनी प्रवाह होगी उतना ही पानी निर्मल होगा| संस्कृति में भी प्रवाह का होना बहुत जरूरी है | यह सांस्कृतिक प्रवाह का ही प्रमाण है की यहाँ शक, हूण जैसे अनेक आक्रमणकारी आये लेकिन वे सारे भारत की विशाल सांस्कृतिक प्रवाह के बाँहों में सिमट गए और मुख्य धारा का अंग बन गए | जहाँ तक भोजपुरी संस्कृति का सवाल है यहाँ की संस्कृति आपसी लगाव, सामाजिक समरसता तथा मानव प्रेम का ही पर्यायवाची है |
भाद्रपद की हरितालिका तीज, छठ, सरस्वती पूजा, जिउतिया, गोधन एवं पिंडिया जैसे त्यौहार पारिवारिक और सामाजिक बंधन को न सिर्फ मजबूत बनाते हैं, बल्कि भावनात्मक रूप से हमें एक दुसरे के करीब भी लाते हैं, जो इसके माटी को एक सोंधी खुशब देता है, जिसकी महक भोजपुरी प्रदेश से लेकर सात संदर पार मॉरिशस, त्रिनिदाद फिजी आदि देशों में भी देखा जा सकता है |
डोम्कच (जलूआ) {यह नृत्य बारात वाले दिन लडके वालों के घर में होता है} जैसे नृत्यों से न सिर्फ समाज की महिलाओं का मनोरंजन होता है, बल्कि ये हमारी सुरक्षा व्यवस्था के नजरिये को भी दर्शाता है |
समस्या
भोजपुरी प्रदेश का अतीत बहुत ही उज्जवल रहा है, लेकिन वक्त ने करवट बदला और आज यह क्षेत्र समस्याओं का गढ़ बन चूका है | सामाजिक समरसता और सदभाव तो इस समाज की आत्मा है, किन्तु क्षुद्र स्वार्थों से ओत-प्रोत मुट्ठी भर असामाजिक लोगों ने यहाँ के कुछ खास वर्ग को गुमराह किया जिसके कारण जातिवाद और नक्सलवाद जैसे कोढ़ ने इस समाज के अंगो को खाना शुरू किया | विकास की धारा का बंद होना तथा राजनेताओं द्वारा तवायफ के दुपट्टे वाली सियासत करना, इसने कोढ़ में खाज का काम किया और आज यह क्षेत्र बाढ़, चिकित्सा और शिक्षा जैसे बुनियादी सुबिधाओं का आभाव, जातीय अहम्, बाहुबलियों का प्रकोप, बेरोजगारी, नक्सलवाद, सामंतवाद आदि जैसे भयानक समस्याओं का ज्वालामुखी बन चूका है, रही सही कसर प्रशासन की उदासीनता एवं भ्रटाचार ने पूरी कर दी |
समाधान
जहाँ तक इन समस्याओं के समाधान की बात है तो इसे दुरुस्त करने के लिए आसमान से कोई फरिस्ता नहीं आएगा, हम लोगों को ही पहल करनी पड़ेगी. समय समय पर
सरकार ने इन समस्याओं से निजात पाने को अनेक नीतियाँ बनाई लेकिन नियत ठीक नहीं थी, जहाँ तक मैं समझता हूँ सबसे पहले नियत ठीक करनी होगी, तभी नीतियाँ ठीक बनेगी, और जब नीतियाँ ठीक बनेगी तभी उनका कार्यान्वयन ठीक होगा, क्योंकि हमारी नियत पहले ही ठीक हो चुकी होगी |
भ्रस्टाचार खत्म करने होंगे, और ये ख़त्म तभी होगा जब हमारी नियत ठीक होगी | भूपतियों द्वारा भूमिहीनों पर हो रहे अत्याचार को बंद करना होगा, और ये तभी ठीक होगा जब हमारी नियत ठीक होगी |
पर्यावरण के अनुकूल औद्योगीकरण, शिक्षा, चिकित्सा और हर हाथ को रोजगार जैसी बुनियादी सुबिधायें हर हाल में इस क्षेत्र को देना ही होगा, तभी हम इस क्षेत्र की बर्बादी रोक सकेंगे तथा क्षेत्रीय सद्भाव को बनाए भी रख सकेंगे
जय भारत जय भोजपुरिया
सत्येन्द्र उपाध्याय "भोजपुरम"
आर टी आई कार्यकर्ता
पीरो, भोजपुर, बिहार

